Thursday, March 13, 2014

चाची का टूशन

मैं उन दिनों अपने चाचा के यहां आई हुई थी। मैं एम ए की छात्रा थी। चाचा बिजनेस के सिलसिले में कुछ दिनों के लिये दिल्ली गये हुए थे। चाची घर पर ट्यूशन पढाती थी। चाची का नाम गीता था। उनकी उम्र 35 वर्ष की थी। उसके पास कोलेज दो के छात्र पढने आते थे। श्याम और मोन्टी नाम था उनका। दोनो ही 20 - 21 वर्ष के थे। मुझे पहले दिन से ही वो हाय हेल्लो करने लगे थे। उन दोनों से मेरी जल्दी ही दोस्ती हो गयी थी। ऊपर का कमरा खाली था सो गीता उन्हे वहीं पढाया करती थी।



एक बार जब गीता ट्यूशन पढा रही थी तब मैं किसी काम से ऊपर कमरे में गयी। जैसे ही मैं कमरे के पास पहुचीं तो मुझे सिसकारी की आवाज सुनायी पडी। मैं सावधान हो गयी। तभी मुझे फिर से हाऽऽय की आवाज सुनायी पडी। मैने धीरे से खिडकी से झांक कर देखा। वो लडके गीता की चूंचियां दबा रहे थे। गीता ने पेन्ट के ऊपर से ही एक का लन्ड पकड रखा था। गीता बार बार आनन्द से सिसकारियां भर रही थी। मैं दबे पांव पीछे हट गयी और नीचे उतर आई।

मेरे सारे शरीर में सनसनी फ़ैल गयी थी। मैं अपने कमरे में आकर बिस्तर पर लेट गयी। मेरी सांसे तेज चल रही थी। मेरे मन में उत्तेजना भरने लगी थी। मुझसे रहा नहीं गया…… मैं फिर से दबे पांव ऊपर गई … मैने फिर से झांक कर देखा… मुझे पसीना छूटने लग गया। कमरे में सभी नंगे थे… श्याम ने अपना लन्ड गीता की चूत में डाल रखा था…और तबियत से चोद रहा था…… मोन्टी ने अपना लन्ड गीता के मुँह में दे रखा था… मैं फिर नीचे आ गयी… मेरी चूत भी गीली हो चुकी थी… मैं अपनी चूत दबा कर बैठ गयी। मैं भी जवान थी…मेरे पास भी जवानी का पूरा खजाना था। मेरे मन में भी चुदवाने तेज इच्छा उठने लगी। मेरी चूंचियां कड़ी होने लगी… जवानी का जोश हिलोरें मारने लगा।

मैं मन मार कर कमरे से बाहर निकल आई… पास की दुकान से अपना मोबाईल रीचार्ज करवाने लगी। जब मैं वापस आई तो उनका कार्यक्रम समाप्त हो चुका था। श्याम और मोन्टी जाने की तैयारी में थे। मुझे देख कर कर वो दोनों ही मुसकराये, मैने भी उन्हे तिरछी निगाहों से मुसकरा कर देखा। वो दोनो चले गये और मैं गीता की किस्मत पर जल उठी… जो कि दो जवान लण्डों की मालकिन थी। मेरे मन में हलचल हो रही थी…। मन अशान्त था …… मुझसे गीता की चुदाई बरदाश्त नही हो पा रही थी।

रात के करीब 10 बज रहे थे…। मैने कमरे की लाईट बन्द कर दी और सोने के लिये लेट गयी। पर नींद कहां थी। रह रह कर गीता की चुदाई की याद आ रही थी। मैने अपनी पेन्टी उतारी , रात को मैं ब्रा नहीं पहनती थी। मैने सोचा कि चूत में उंगली करके झड़ जाती हूं…… पर मुझे उसी समय बाहर कुछ आवाज आई… मैने दरवाजे से झांक कर देखा तो श्याम और मोन्टी गीता के कमरे की तरफ़ जा रहे थे। मैने अपने कमरे के दरवाजे के छेद में आंखे गडा दी , यह दरवाजा चाचा के कमरे में खुलता था, और सुनने का प्रयास करने लगी। मुझे ये सुन कर हैरानी हुई कि गीता उन दोनो के साथ मेरी चुदाई का प्रोग्राम बना रही थी… पर कैसे…?

वे तीनों मेरे कमरे की ओर आने लगे। मैं भाग कर अपने बिस्तर पर आकर लेट गयी। मुझे लगा कि वो तीनों मेरे कमरे के बाहर आ गये है…… तभी मेरे कमरे का दरवाजा खुला… मैने देखा गीता पहले अन्दर आयी… फिर दोनो उनके पीछे पीछे आये……। मैने सोने का बहाना किया। मोन्टी ने दरवाजा अन्दर से बन्द कर दिया। पर तीनों मेरे साथ क्या करेंगे …… क्या बलात्कार… यानी मेरी चुदाई… मेरा मन खुशी के मारे उछलने लगा…बिना कुछ किये मन की मुराद पूरी हो जाये तो… फिर ऊपर वाले का धन्यवाद करो…। मेरा सोचना बिलकुल सही निकला। श्याम ने लाईट जला दी… मुझे देख कर उन दोनो के मुंह में पानी आ गया। मैने पेन्टी और ब्रा वैसे भी नहीं पहन रखी थी। स्कर्ट भी जांघों से उपर आ चुका था। अन्दर से मेरी चूत झांक रही थी।

श्याम ने बिस्तर पर पास बैठ कर मेरी छोटी सी कमीज़ को ऊपर कर दिया। मेरे नंगी चूंचियां उसके सामने तनी हुयी खडी थी। मेरे शरीर में रोमांच भर आया… मुझे लग रहा था कि मेरी चूंचियां पकड कर मसल दे… लेकिन उसने बडे प्यार से मेरे स्तन सहलाये… मेरी नोकों को हौले हौले से पकड कर मसलते हुये घुमाया। इतने में मोन्टी ने मेरे स्कर्ट को ऊंचा करके मेरी चूत नंगी कर दी। अचानक मुझे मेरी चूत पर गीलापन लगा…… मोन्टी की जीभ से थूक मेरी चूत पर टपका कर उसे चाट लिया था…… मैं तड़प उठी… पर मुझे ज्यादा इन्तजार नहीं करना पडा। गीता ने मेरे दोनो हाथ ऊपर कस कर पकड़ लिये। मोन्टी ने मेरी टांगे चीर कर फ़ैला दी। और मेरी टांगों के बीच में आ गया। अब मुझे लग गया कि मैं चुदने वाली हूं……तो मैने नाटक शुरु कर दिया…… मैने जाग जाने का नाटक किया…

"अरे ये क्या…… छोडो मुझे……… चाची…"

"चुप हो जा…कुतिया… मजे ले अब…"




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