Thursday, March 13, 2014

तीनो का संगम

करन और रमेश मेरे अच्छे दोस्तों में थे। हम तीनों अक्सर शाम को झील के किनारे घूमने जाते थे. मुझे करन ज्यादा अच्छा लगता था. उसमे सेक्स अपील ज्यादा थी. उसमें मर्दों जैसी बात थी.
 पर रमेश साधारण था...बातें भी कम करता था. हम तीनो हम उमर थे. मैं करन के बदन को मन में नंगा करने की कोशिश करती थी और सोचती थी की उसका लंड कैसा होगा. जब खड़ा होता होगा तो कैसा लगता होगा. कैसी चुदाई करता होगा. कुछ दिनों से मैंने महसूस किया कि करन भी मुझ में खास दिलचस्पी लेने लगा है। रमेश की नज़रें तो मैं पहचान ही गई थी। रमेश तो मन ही मन में शायद मुझे प्यार करता था. पर बोलता कुछ नहीं था.



जब मेरे घर वाले ५ -६ दिनों के लिए दिल्ली गए तब एक दिन मैंने कुछ सोच कर दोनों को घर पर बुलाया. मैंने सोचा की दोस्ती तो बहुत हो गयी, अब दोस्ती को भुना लेना चाहिए. करन को जाल में फंसा लेना चाहिए. लगता था वो चक्कर में आ भी जाएगा.

रमेश और करन दोनों ही दिन को ११ बजे मेरे घर पर आ गए. करन और रमेश एक साथ ही कार में आए थे. मैंने उनके लिए अच्छा लंच तैयार किया था. मैंने उस दिन जान बूझ कर उत्तेजक कपड़े पहने थे. मेरा कसा हुआ तंग पजामा उन्हें अच्छा भी लग रहा था. उन दोनों की नजरें बार बार मेरे चूतडों पर जा रही थी. मेरी चुन्चियों के उभर भी उनकी नजरों में समां रहे थे. करन बार बार मेरे पास आकर मुझे छूने की कोशिश भी कर रहा था.

मुझे लगा कि ये तो आराम से काबू में आ जायेंगे. मेरा टॉप मेरी चूतडों से ऊपर था इसलिए मेरी दोनों गोलाइयां उन तंग पजामे में ऊपर से खूबसूरत लग रही थी. पजामा तंग था, इसलिए वो मेरी चूतड की दरारों में भी घुसा था. मेरे चलने पर, झुकने पर मेरे सरे कटाव उभर लंड को खड़ा करने के लिए काफी थे. उन दोनों का निहारना मुझे रोमांचित करने लगा. करन तो अब बार बार मेरे चूतडों को भी स्पर्श कर रहा था. मुझे लगा कि करन को कब्जे में कर लेना चाहिए. मैंने रमेश को हटाने के लिए उसे बाहर भेज दिया.

"रमेश...प्लीज़ मेरी मदद कर दो ... पास की दुकान से ये समान लाना है ..."

"हाँ ..हाँ ... बताओ..." मैंने उसे एक लिस्ट बना कर दे दी. रमेश पैदल हे सामान लेन चला गया.

उसके जाते ही मैंने दरवाजा बंद कर दिया. करन मुझे देखने लगा. वो मुस्करा कर बोला ..."नेहा. ... दरवाजा क्यों बंद कर दिया ..."

मैं मुस्कुराई... "बस यूँ ही ..."

करन मेरे पास आया और उसने अचानक मेरा हाथ पकड़ लिया. मैंने घबराने का नाटक किया.

"करन ...ये क्या कर रहा है ... छोड़ दे मेरा हाथ ..." मैंने कुछ घबराते हुए और शरमाते हुए कहा. पर हाथ नहीं छुडाया.

करन ने कहा - "नेहा ...प्लीज़ ...एक रेकुएस्ट... सिर्फ़ एक किस ..."

"अरे कोई देख लेगा ..."

उसने कहा - " अच्छा कौन देखेगा..." और उसने मुझे धीरे से अपनी तरफ़ खींच लिया.

"बस ..एक ही ...प्रोमिस ना..." मुझे पता था कि खेल आरम्भ हो चुका है. करन मेरे ऊपर झुक गया.

मेरे नरम होंट उसके होटों से चिपक गए. उसने मेरे चूतड दबा कर पकड़ लिए. मैं सिसक उठी. उसके शरीर का स्पर्श मुझे बहुत ही सुकून दे रहा था. मैंने आँखें बंद कर ली. वो मुझे बेतहाशा चूमता रहा था. मैं चूमने में उसका पूरा साथ दे रही थी. अचानक लगा कि रमेश आ गया है. मैंने जोर से धक्का दे कर उसे दूर करने की कोशिश की पर तब तक देर हो चुकी थी. रमेश एकटक हमें देख रहा था. मैं वास्तव में घबरा गयी.

करन बोला- थैंक्स नेहा ... रमेश ! मेरी फरमाइश तो नेहा पूरी कर दी...अब तुम भी फरमाइश कर दो ..."

रमेश हडबडा गया -"ने ... नेहा... मैं .. मतलब ...मुझे भी ... किस करोगी..."

मेरी सांसे शांत होने लगी. मैंने उसे तिरछी नजरों से देखा,"तो दूर क्यों खड़े हो ... आ जाओ..."

वो शर्माता हुआ सा पास आ गया. मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसके होंट से होंट मिला दिए. करन ने इतने में मेरे चूतडों को दबा दिया. और चूतडों को पकड़ कर मसलने लगा. मैं मस्त होने लगी.

मुझसे रहा नहीं गया. मैंने रमेश का लंड पकड़ लिया. उसका लंड खड़ा था. मैंने उसे मसल दिया. वो एकदम से सहम गया. करन मेरे पीछे चिपक गया. और उसका लंड मेरे चूतडों की दरार में जोर लगाने लगा. एक साथ दो दो लड़कों का लंड मुझे मिलेगा ये मैंने कल्पना भी नहीं की थी. मेरा मन तो दोनों से चुदने की बात सोच कर ही झूम उठा था. करन की तरफ़ मैंने मुड कर देखा. उसकी आंखों में सेक्स भरा था. मैंने अब मन को सँभालते हुए कहा -"करन... रमेश ...मेरी बात सुनो ..."

"हाँ .. हाँ ... कहो ..."

"तुम्हारे मन में क्या है... बताओ ...तो ..."

रमेश ने अपना सर झुका लिया. पर करन बोला -"तुम्हारी इच्छा हो तो ... एक मौका मुझे दो... मुझसे अब रहा नहीं जाता है .."

"रमेश ..तुम भी कुछ कहो..."

"नेहा ...तुम हमारी दोस्त हो... तुम्हारी मर्ज़ी है... मना भी कर सकती हो ...पर दोस्ती नहीं तोड़ना ..."

"अब तुम दोनों की यही इच्छा है तो ... फिर मेरी सूरत क्या देख रहे हो .. अब हो जाओ शुरू..."



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